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मेरे सामने 20 साल की मरियम बैठी हैं। गोरा-चिट्टा, साफ चमकदार चेहरा। काली आंखें। लंबे सुनहरे बाल। इस खूबसूरत चेहरे के पीछे की उदासी, मैं साफ देख पा रही हूं।

मूल रूप से उज्बेकिस्तान की रहने वाली मरियम अपनी दो कजन बहनों के साथ भारत आई हैं। बिना वीजा यहां तक पहुंचने के लिए अक्टूबर 2021 में इन लोगों ने नेपाल का रास्ता चुना था। नेपाल के रास्ते जब वो बिहार पहुंचीं तो पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। उसके बाद 18 महीने वो जेल और डिटेंशन सेंटर में रहीं।

भारत में उज्बेकिस्तान के दूतावास, मानवाधिकार संगठन और परिवार की कड़ी मशक्कत के बाद वो रिहा हो सकी हैं। मेरी मुलाकात उनसे दिल्ली में हुई। जहां मरियम और उनकी कजन जल्द से जल्द अपने देश लौटने का इंतजार कर रही हैं।

इस बार ब्लैकबोर्ड में कहानी मानव तस्करी की शिकार इन तीन लड़कियों की, जिन्हें लोगों ने इंसान नहीं, एक वस्तु समझा और वैसा ही व्यवहार किया।

तीनों लड़कियां पिछले आठ महीनों से अपने घर से दूर हैं। इस दौरान परिवार वालों से उनका संपर्क पूरी तरह टूट गया था।

तीनों लड़कियां पिछले आठ महीनों से अपने घर से दूर हैं। इस दौरान परिवार वालों से उनका संपर्क पूरी तरह टूट गया था।

सुबह करीब 11 बजे रहे हैं। जब मैं इनसे मिलने पहुंची तो मुझे बताया गया कि तीनों सो रही हैं। बीती रात इन सब ने दिल्ली देखी है। मैंने थोड़ा इंतजार किया, यह सोचकर कि शायद लंबे वक्त के बाद इन्हें सुकून की नींद मिली हो।

कुछ देर बाद मरियम की नींद खुलती हैं। वो मुझसे मिलने आती हैं। उनके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान है। भारत पहुंचने के बाद पहली बार आजाद हवा में सांस ले पाई हैं। 18 महीनों में उन्होंने टूटी-फूटी हिंदी भी सीख ली है। उनके लहजे में बिहार में रहने का असर दिखता है।

मेरे सवाल इन्हें फिर से उस स्याह दुनिया में ले जाते हैं, जिन्हें वो याद ही नहीं करना चाहतीं।

मैं छह घंटे तक इनके साथ रहती हूं। इस दौरान बीच-बीच में जब भी उनके घर वापसी के टिकट बुक होने की बात होती है, उनका चेहरा खुशी से चमक उठता है। जब उन्हें पता चलता है कि अभी टिकट बुक होने में समय लग सकता है, तो वो फिर से उदास हो जाती हैं।

मरियम की दोनों बहनें भी उठ चुकी हैं। मेरे सामने ही वो उज्बेकिस्तान अपनी मां को वीडियो कॉल करती हैं। मैं उनकी भाषा तो समझ नहीं पा रही, लेकिन उनकी बातें मुझे भी भावुक कर रही हैं।

बात करते हुए वो कभी हंसती हैं, कभी रोती हैं।

किस मजबूरी में ये तीनों भारत आने को राजी हुईं? मैं यह जानना चाहती थी।

पता चला कि इन तीनों लड़कियों में एक तलाकशुदा है, जिसे काम की तलाश थी। दूसरी अपने परिवार और बीमार भाई की मदद के लिए काम करना चाहती थी। तीसरी अपनी सगी बहन को अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए नौकरी की तलाश में भारत आ गई।

मरियम का परिवार गरीब है। उन्हें लगा भारत पहुंचकर जो कमाई होगी उससे घरवालों की मदद कर पाएंगीं।

मरियम का परिवार गरीब है। उन्हें लगा भारत पहुंचकर जो कमाई होगी उससे घरवालों की मदद कर पाएंगीं।

मैंने मरियम से पूछा- जॉब ऑफर किसने दिया था, आप तीनों को भारत कौन लाया था?

मरियम ने बताया कि इन्हें शातिर मानव तस्कर और भारत में ‘रशियन गर्ल्स’ के सेक्स कारोबार में लिप्त महिला ‘बॉस’ अजीजा शेर ने बुलाया था। उसके पास इन लड़कियों के बारे में पूरी जानकारी थी। उसे पता था कि ये लड़कियां जरूरतमंद हैं। अजीजा शेर ने इन्हें ऐसा ऑफर या कहें कि लालच दिया कि ये उसमें फंस गईं।

उस दिन को याद करते हुए 25 साल की गुले कहती हैं, ‘मैं कपड़े सिलने का काम करती थी। मेरे पास अजीजा का कॉल आया। उसे मेरे बारे में सब पता था। उसे पता था कि मेरा तलाक हो गया है। वो जानती थी कि मुझे अच्छी नौकरी की तलाश है।

उसने कहा कि मैं तुम्हारे पड़ोसी देश तुर्कमेनिस्तान से हूं और हिंदुस्तान में कारोबार करती हूं। मुझे तीन लड़कियों की जरूरत है, दो को मैं रेस्टोरेंट में काम दूंगी और एक को अपना बच्चा पालने के लिए घर में रखूंगी। अजीजा ने अच्छा पैसा देने और आने-जाने का पूरा खर्च उठाने का भरोसा दिया। उसकी बातों को सुनकर ऐसा लगा कि अब हमारे दिन सुधर जाएंगे। यही मेरी बेवकूफी थी।’

गुले थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती हैं। मैं पूछती हूं- सब ठीक।

वो कहती हैं, ‘हां। अजीजा का फोन आते ही मैंने अपनी कजन मरियम को बुला लिया। मैं जानती थी कि वो भी जरूरतमंद है। हमने आपस में बात की और तीनों ने तय किया कि अगर हम तीनों को वो काम देगी तो हम एक साथ निकल पड़ेंगे।’

इस फोन कॉल के बाद अजीजा शेर से कई बार उनकी बात हुई। अजीजा ने उन्हें समझाया कि उनका पासपोर्ट बनने और हिंदुस्तान आने तक जो भी खर्च आएगा, वो उठाएगी। उसके बाद काम के बदले उन्हें एक तय सैलरी मिलेगी जिसे उज्बेकिस्तान में उनके परिवार को भेज दिया जाएगा।

गरीबी की मार झेल रहीं इन तीनों लड़कियों के सामने ऐसा ऑफर था जिसे इनकार करना उनके लिए मुश्किल था। सितंबर 2021 में इनका पासपोर्ट बना और अजीजा शेर ने अक्टूबर 2021 में दुबई के रास्ते नेपाल आने तक के उनके टिकट बुक किए। फिर वहां से भारत में एंट्री कराने की अपने नेटवर्क के जरिए व्यवस्था की।

गुले बताती हैं, ‘जब हम उज्बेकिस्तान से चले थे तो हम बहुत खुश थे। हम पहले कभी विदेश नहीं गए थे। हवाई जहाज में बैठने को लेकर उत्साहित थे।’

नेपाल आने तक तीनों पूरी तरह से अनजान थीं कि उन्हें सेक्स वर्क करवाने के लिए भारत लाया जा रहा है। मरियम कहती हैं, ‘ हम तीनों खुश थे। सोच रहे थे कि कुछ पैसा कमा सकेंगी और अपने परिवार को गरीबी से निकाल सकेंगी। नेपाल आकर एक झटके में हमारी दुनिया ही बदल गई।’

नेपाल पहुंचने पर कब पता चला कि आप तीनों फंस गई हैं?

गुले कहती हैं, ‘भारत में एंटर करने से पहले हमें बिहार की सीमा से सटे नेपाल के बिराटनगर में एक होटल में रखा गया था। तब हमें न हिंदी आती न ही अंग्रेजी। रात के डेढ़ बजे थे। दो लोग हमसे मिलने आए। उन्होंने सफेद कपड़े पहने थे और शराब पी रखी थी। वो खुद को पुलिसवाला बता रहे थे। हमसे वीजा दिखाने को कहा। हमने पासपोर्ट दिखाया। इसी दौरान अजीजा शेर को फोन किया। उन्होंने अजीजा शेर से क्या बात की, हमें नहीं पता।’

ये गुले हैं, इन्हें ही महिला तस्करी में लिप्त अजीजा शेर ने सबसे पहले फोन कर जॉब का ऑफर दिया था।

ये गुले हैं, इन्हें ही महिला तस्करी में लिप्त अजीजा शेर ने सबसे पहले फोन कर जॉब का ऑफर दिया था।

फोन रखने के बाद क्या हुआ?

‘उन पुलिसवालों ने हमसे कहा कि टेंशन मत लो। हमें पता है तुम इंडिया में क्यों जा रही हो और वहां क्या काम करने वाली हो। तीनों हम दोनों के साथ सेक्स करो, बस हम तुम्हें छोड़ देंगे और इंडिया जाने देंगे। उनकी बात समझने के बाद हम तीनों डर गए। हम अपनी जगह पर अडे़ रहे, हमने उनकी मंशा कामयाब नहीं होने दी। इससे वो भड़क गए और वहां से चले गए।’

इस घटना के बाद इन तीनों लड़कियों को अंदाजा हो गया था कि अजीजा उनसे क्या चाहती है। वापस लौटने के पैसे उनके पास थे नहीं। मरियम कहती हैं कि जब उन्होंने इस बारे में अजीजा से बात की तो उसने कहा, ‘तुम अब अपने देश नहीं लौट पाओगी, आगे जिंदा रहना है तो जैसा मैं कहूं वैसा करती रहो। जिसके साथ जाने के लिए कहा जाए, उसके साथ जाओ।’

उन लोगों ने आपको कोई नुकसान तो नहीं पहुंचाया?

गुले बताती हैं, ‘जब उन पुलिसवालों ने हमसे कहा कि हमारे साथ सेक्स करोगे तो आगे जाना दिया जाएगा, नहीं तो यहीं सड़ोगी। मेरी बहन ने उस आदमी को नाखून से नोंच लिया। कोका कोला की शीशे की बोतल कमरे में थी। उसने उसे तोड़कर गले पर लगाकर कहा कि अगर तुम अभी बाहर नहीं गए तो मैं अपना गला काट लूंगी।

उन लोगों ने हमें धमकी दी और कहा कि अगर बात नहीं मानोगी तो कभी अपने देश वापस नहीं लौट पाओगी। उनसे बचने के लिए हमने अपना हाथ काट लिया और हम बहुत जोर से चिल्लाए। इतने में वो लोग चले गए।’

गुले कहती हैं, ‘सुबह छह बजे असली पुलिस आ गई, तीन गाड़ियों में। उससे पहले अजीजा शेर का फोन आया था। उसने कहा कि अगर पुलिस पूछे तो कहना कि नेपाल में घूमने आए हैं। हम तीनों के पास नेपाल का टूरिस्ट वीजा था। बावजूद इसके पुलिस ने हमें परेशान किया। हमें बाद में एहसास हुआ कि वहां की पुलिस के पास पहले से जानकारी थी कि हम किस होटल में रुके हैं।’

ये लड़कियां यह भी दावा करती हैं कि नेपाल में उन्हें एक थाने में ले जाया गया। जहां सिर्फ मर्द पुलिसकर्मी थे। उन लोगों ने इनकी तलाशी ली। गलत तरीके से इनके बदन को छुआ।

गुले कहती हैं, ‘हमने उनसे कहा कि हम मुसलमान हैं, कोई गैर हमें ऐसे नहीं छू सकता। इस पर उन लोगों ने कहा कि हमें पता है कि तुम क्या करने जा रही है। उन्होंने पुलिस स्टेशन में ही हमसे सेक्स करने के लिए कहा। जब उन्हें लग गया कि ये लड़कियां नहीं मानेंगी और हंगामा कर देंगी तो उन्होंने हमें छोड़ दिया।’

मेरे मन में सवाल कौंध रहा था कि जब इन लड़कियों को नेपाल पहुंचकर पता चल गया था कि इन्हें सेक्स वर्क में धकेला जा रहा है तो फिर ये भारत जाने के रास्ते पर आगे क्यों बढ़ीं?

मेरे इस सवाल पर एक लंबी खामोशी के बाद गुले कहती हैं, ‘हमारे पास वापस लौटने के पैसे नहीं थे। अजीजा ने कहा था कि अगर तुम्हारे बारे में लोगों को पता चलेगा तो वो तुम्हें नोच खाएंगे। मारकर फेंक देंगे, किसी को पता भी नहीं चलेगा। अब तक हम अपनी इज्जत बचा रहे थे, अब सवाल जान का था।’

तीनों लड़कियों को अजीजा शेर के भेजे हुए दो लोग इंडिया लेकर आए।

गुले कहती हैं, ‘अजीजा शेर ने फिर फोन किया और कहा कि विराटनगर एयरपोर्ट के बाहर दो लड़के हैं, जहां भी वो ले जाएं उनके साथ चले जाना। बस अपना चेहरा छुपाए रखना। एयरपोर्ट के बाहर हम उन दो लड़कों के साथ ई-रिक्शा पर बैठ गए। हमें खुद भी नहीं पता था कि अब हमारे साथ क्या होगा।’

इनकी हैंडलर अजीजा ने इन्हें चेहरा ढंक कर चलने के लिए कहा था। इसके बाद भी इन पांचों को सीमा सुरक्षा बल ने भारत में एंट्री के दौरान शक होने पर पकड़ लिया था। मीडिया में कहानी आई कि ये लड़कियां फेसबुक और इंस्टाग्राम के जरिए बिहार के दो युवकों से मिलीं थीं और उनसे मिलने भारत आ गईं थीं। मैंने इस बात की सच्चाई पूछी।

23 साल की इमोना कहती हैं, ‘ये बात बिल्कुल झूठ है। हम उन लड़कों को जानते भी नहीं थे। इंस्टाग्राम और फेसबुक पर कभी कोई बात नहीं हुई थी। उन्हें अजीजा ने भेजा था।’

गिरफ्तारी के बाद इन्हें अररिया जेल भेज दिया गया जहां दस महीने की सुनवाई के बाद जज ने उन्हें निर्दोष और मानव तस्करी का पीड़ित माना और उन्हें उज्बेकिस्तान डिपोर्ट किए जाने के आदेश दिए।

ये इमोना हैं, जेल में इन्होंने किसी तरह थोड़ी-थोड़ी हिंदी बोलनी सीखी थी।

ये इमोना हैं, जेल में इन्होंने किसी तरह थोड़ी-थोड़ी हिंदी बोलनी सीखी थी।

इमोना बताती हैं कि शुरू में उनके साथ जेल में बुरा बर्ताव हुआ। फिर चीजें ठीक हो गईं, जिलाधिकारी के आदेश पर उन्हें घर पर बात भी करने दी जाती थी।

इसके बाद उन्हें बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ करेक्शन एडमिनिस्ट्रेशन (बीका) हाजीपुर भेज दिया गया।

गुले कहती हैं कि यहां पहला एक महीना ठीक गुजरा, लेकिन उसके बाद हालात बेहद मुश्किल हो गए। ये तीनों लड़कियां यहां कई तरह के बुरे बर्ताव का आरोप लगाती हैं। अकेलेपन और उत्पीड़न की वजह से वो डिप्रेशन की शिकार भी हो गईं।

गुले के बाएं हाथ पर काटने के कई निशान हैं। वो इन निशानों को दिखाते हुए कहती हैं, ‘ये ऊपर वाले बीका हाजीपुर के हैं और ये नीचे वाले अररिया जेल के। मुझे जब भी गुस्सा आता, लोग गंदी बातें करते, लगता जिंदगी में कुछ नहीं बचा है तो और कुछ तो नहीं कर पातीं, बेबसी में अपने हाथ ही काट लेती।’

हाल ही में उन्होंने अपना हाथ काटा था। गुले बताती हैं कि महिला सिपाहियों ने उनके साथ बहुत गलत तरीके से तलाशी ली, उनके प्राइवेट पार्ट में उंगलियां डालने की कोशिश की। इसी से नाराज होकर उन्होंने अपना हाथ काट लिया।

नेपाल और भारत दोनों ही जगह अपनी इज्जत बचाने के लिए गुले ने कई बार अपनी नस काटने की कोशिश की।

नेपाल और भारत दोनों ही जगह अपनी इज्जत बचाने के लिए गुले ने कई बार अपनी नस काटने की कोशिश की।

हाजीपुर के डिटेंशन सेंटर में रहने के दौरान इन लड़कियों को परिवार से कभी बात नहीं करने दी गई।

इमोना कहती हैं, ‘हमें वापस भेजने के लिए सब पैसे की ही बात करते थे। पता नहीं यहां कैसा कानून है, यहां जो भी बात करता है बस पैसे की ही बात करता है। हर किसी की जबान पर बस मनी, मनी ही है। यहां कोई रियल कानून नहीं है, यहां बस मनी का ही कानून है।’

सवालिया लहजे में वो कहती हैं, ‘हमारे पास पैसे नहीं थे। हम कहां से देते। पैसे अगर होते तो हम इंडिया ही क्यों आते?’

ये लड़कियां दावा करती हैं कि जेल और डिटेंशन सेंटर में रहने के दौरान कई लोगों ने इनसे सेक्स की मांग की। इनकार करने पर इन्हें पीटा भी गया।

मरियम तो यह भी कहती हैं कि एक बार उनके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की गई तो उन्होंने आत्महत्या का प्रयास किया, इसके बाद वो लोग डरकर भाग गए।

गुले का कहना है कि हाथ की नस काट लेने के बावजूद उन्हें अस्पताल नहीं ले जाया गया।

ये तीनों लड़कियां और भी कई गंभीर आरोप लगाती हैं। डिटेंशन सेंटर की एक महिला कर्मचारियों ने भी इनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। बार-बार उन्हें प्रताड़ित करने के लिए उनके प्राइवेट पार्ट में उंगलियां डालती थी और उन्हें अपमानित महसूस कराती थी। उन्हें ताने मारे जाते थे कि इंडिया में सेक्स का धंधा करने आई हो।

इमोना बताती हैं, ‘लोग हमसे कहते थे कि जब भारत में सेक्स ही करने आई हो तो हमारे साथ करने में क्या दिक्कत है। किसी ने कभी हमारी मजबूरी को नहीं समझा। ये समझने की कोशिश नहीं की कि हम गलत हालात में फंस गए हैं। हर कोई हमारे जिस्म को देख रहा था, इंसान कोई नहीं समझ रहा था।’

मैंने पूछा कि डिटेंशन सेंटर में होने वाले बुरे व्यवहार की शिकायत क्यों नहीं की?

ये तीनों बताती हैं कि डिटेंशन सेंटर में जिलाधिकारी जब उनकी खबर लेने आए तो वहां के कर्मचारियों ने उन्हें समझा दिया कि उनके सामने कुछ न कहें और उन्हें बताएं कि अच्छे से रखा जाता है।

गुले कहती हैं, ‘DM कहकर गए थे कि हर सप्ताह हमारी घर पर बात कराई जाए। उन्होंने अच्छे से बात की थी और भरोसा दिया था कि जल्द ही हमें वापस भेज दिया जाएगा। DM के चले जाने के बाद हमारे साथ फिर से बुरा बर्ताव किया गया। धमकाया गया कि अगर दोबारा कोई मिलने आए और कुछ बताया तो और बुरा हाल होगा, कभी अपने देश नहीं लौट पाओगी।’

गुले, मरियम और इमोना जैसी सैकड़ों लड़कियों को हर साल अवैध सेक्स कारोबार में धकेलने के लिए भारत लाया जाता है। दिल्ली में रशियन गर्ल्स के धंधे से जुड़े एक दलाल के मुताबिक ऐसी हर लड़की से बॉस एक महीने में कम से कम तीन से चार लाख रुपए तक का कारोबार कराते हैं। ये पैसा इतना अधिक होता है, जहां-जहां ये पहुंचता है, वहां इस कारोबार के लिए रास्ते खुलते जाते हैं। दलाल के मुताबिक अधिकतर लड़कियों को नेपाल के रास्ते ही भारत लाया जाता है।

इन लड़कियों को रिहा कराने में मदद करने वाले NGO एम्पॉवरिंग ह्यूमैनिटी से जुड़े हेमंत शर्मा कहते हैं, ‘इन लड़कियों की कहानी दर्दनाक है। नेपाल के रास्ते इन्हें देह व्यापार में डालने के लिए भारत लाया जा रहा था। इन्हें रिहा होने से पहले नेपाल और भारत में उत्पीड़न झेलना पड़ा। जिन महिलाओं के नाम ये ले रही हैं, वो महिलाएं पहले ही भारत में देह व्यापार और मानव तस्करी के मुकदमों में वांटेड हैं। बिहार में इनके साथ बहुत ज्यादती हुई है। अदालत के इन्हें निर्दोष करार दिए जाने के बाद भी इन्हें डिटेंशन सेंटर में रखा गया।’

हेमंत शर्मा NGO एम्पॉवरिंग ह्यूमैनिटी के लिए काम करते हैं। इन लड़कियों को जेल से रिहा कराने और निर्दोष साबित करने में इनकी अहम भूमिका है।

हेमंत शर्मा NGO एम्पॉवरिंग ह्यूमैनिटी के लिए काम करते हैं। इन लड़कियों को जेल से रिहा कराने और निर्दोष साबित करने में इनकी अहम भूमिका है।

डिटेंशन सेंटर में विदेशी नागरिकों को दिक्कत नहीं होनी चाहिए?

इस पर हेमंत शर्मा कहते हैं, ‘डिटेंशन सेंटर में विदेशी नागरिकों के लिए अच्छा पानी, अच्छी रहने की जगह और खाने-पीने की व्यवस्था का प्रावधान है, लेकिन इन्हें कोई सुविधा नहीं दी गई। भारत में जेल में बंद अपराधी को भी अपने परिवार से बात करने का अधिकार हैं। भले ही ये बिना वीजा के भारत आईं, लेकिन इनके भी मानवाधिकार हैं। एक साल तक इन्हें उज्बेकिस्तान में परिवार से बात नहीं करने दी गई। इससे शक पैदा होता है कि डिटेंशन सेंटर में इनके साथ कुछ बहुत बुरा हुआ है।’

चलते-चलते मैं इन लड़कियों से पूछती हूं कि अपने वतन लौटने के बाद आप क्या करेंगीं। इनका जवाब एक जैसा ही होता है। तीनों कहती हैं, ‘हम एयरपोर्ट से उतरकर अपने वतन की मिट्टी को चूमेंगे। घर पहुंचकर अपनी मां के गले लगकर रोएंगे। नमाज पढ़-पढ़ कर अल्लाह से अपनी गलतियों की माफी मांगेगे। हम दुआ करेंगे कि ऐसा फिर कभी किसी के साथ न हो।’

अगले गुरुवार, 20 जुलाई को ब्लैकबोर्ड सीरीज में पढ़िए-

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पति कैरेक्टर पर शक करता: पढ़ाई छुड़ाकर एक साल कैद में रखा

12वीं क्लास में थी जब 2010 में मेरी शादी हो गई। मुझे भरोसा था कि पति आगे पढ़ाई और काम के लिए मना नहीं करेगा क्योंकि वो खुद भी पढ़े-लिखे थे। एक मल्टी नेशनल कंपनी में जॉब करते थे। शादी के पहले साल हुआ भी ऐसा ही।

मुझे पति ने ग्रेजुएशन में एडमिशन दिला दिया, लेकिन मुश्किल से मैं फर्स्ट ईयर पूरा कर पाई थी। वो मुझ पर शक करने लगे। मेरे चरित्र पर सवाल उठाने लगे। भाई से भी फोन पर बात करना दुश्वार हो गया।

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